श्रमेव जयते
मई दिवस महज एक तिथि भर नहीं है यह अवसर है श्रमिकों के आत्मबल, संघर्ष और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को याद करने का और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का.

परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है.परिश्रम ही प्रतिभा का पिता है.कोई भी यथार्थतः मूल्यवान वस्तु ऐसी नहीं जो कष्टों व श्रम के विना खरीदी जा सके.चाहे सूखी रोटी क्यों न हो, श्रग के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता.जब हम प्रेम पूर्वक श्रम करते हैं तब हम अपने आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गाँठ बाँधते हैं. कहा जाता है कि एक बार भगवान राम ने सुग्रीव से पूछा कि लंका कितनी दूर है.सुग्रीव ने उत्तर दिया – स्वामी ! आलसियों के लिए बहुत दूर है,पर उद्यमशील के हाथ के पास ही है.कहा गया है जो सागर में जाते हैं उन्होंने मोती जमा किए हैं और जो छिछले पानी वाले किनारे अपनाते हैं, उनके भाग्य में शंख और सीप होते हैं.
मनुष्य एक जड़ मशीन नहीं है उसके पास हृदय है, उसकी भावनाए हैं वह एक सचेत प्राणी हैं.प्रत्येक काल में ही श्रम का अपना महत्व रहा है और आगे भी रहेगा.श्रम में त्याग होता है और पवित्रता होती है.श्रम का कोई बदला नहीं है. श्रमशीलों के प्रति प्रेम, सहानुभूति और मैत्री प्रदर्शित करना ही उनकी वास्तविक मजदूरी हो सकती है.अतः जंग लगकर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है. निरन्तर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं

-रजत मुखर्जी
प्रसिद्ध पर्यावरणविद्