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रवीन्द्रनाथ का “शिवाजी-उत्सव”

छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप
भारतीय स्वतंत्रता के दो सजग प्रहरी रहे हैं।इन दोनों चरित्रों ने देश के लिए जो किया उसका उदाहरण बहुत कम मिलता है।महाराष्ट्र मनीषा को स्वातंत्र्य-संग्राम के लिए समर्पित बाल गंगाधर तिलक ने शिवाजी उत्सव’ और ‘गणेश पूजा’ का आयोजन कर देशवासियों को स्वतंत्रता के प्रति सजग करने और मुक्ति पाने का उपाय सुझाया था। विदेशी दासता के खिलाफ एकबद्ध कर ‘दि बंगाल‘में भी ‘हिन्दुमेला’ और दुर्गापूजा का आयोजन इसी सत उद्देश्य से किया गया था।कवीन्द्र रवीन्द्र को बंगाल में शिवाजी उत्सव समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।कवि ने अलबर्ट हॉल (कोलकाता का कालेज स्ट्रीट स्थित हॉल आज एक तल्लेपर कॉफी हाउस है) में ‘शिवजी-उत्सव’ पर अध्यक्ष पद से अपने विचार कविता में व्यक्त किए।उनकी यह कविता ‘शिवाजी-उत्सव’ शीर्षक से ‘संचयिता’ के पृ० संख्या 475-481 पर संग्रहीत है।संचयिता का प्रकाशन ‘रवीन्द्र-भारती’ से 1338 बंगाब्द में हुआ है।रवीन्द्रनाथ ने शिवाजी-उत्सव’ कविता की रचना गिरिडीह में 1311 बंगाब्द में अर्थात् 1904 ई. में की थी।कवि रवीन्द्रनाथ कहते हैं आज से तीन सौ वर्ष पूर्व शिवाजी ने स्वतंत्रता की जो मशाल जलाई थी वह आज भी प्रज्ज्वलित है और देश वासियों को स्वतंत्रता की प्रेरणा देती है।पता नहीं विगत दूर एक रातार्थी में कब एक पहाड़ी पर बैठ कर शिवाजी ने एक धर्म-राज्य का सपना संजोया था।उस समय बंगाल में यह आवाज नहीं गूंजी थी। तीन सौ वर्ष के बाद भी आज प्रतापी शिवाजी का सपना पूर्ण नहीं हुआ। आज मराठा शक्ति के साथ सुर में सुर बंगाल का मिलाकर बोलो ‘जयतु शिवाजी‘ में कवि की भावनाएँ दृष्टव्य हैं-कोन दूर शताब्दर कोन-एक अख्यात दिवसे नाहि जानि आजि माराठार कोन शैले अरण्येर अंधकारे बोसे, हे राजा शिवाजी. माराठार साथै आजि, हे बांगाली, एक कँठे बोलो- ‘जयतु शिवाजी।

रजत मुखर्जी